केरल में पेड़ों पर लगे बारकोड


 








केरल में देश का पहला डिजिटल गार्डन


 जिसके हर पेड़ का क्यूआर कोड होगा; स्कैन करते ही मोबाइल पर मिलेगी पेड़ की सारी जानकारी


इंदौर शहर में भी पेड़ों का डिजिटल डाटा तैयार किया जा रहा है। 50 हजार पेड़ों पर क्यूआर कोड लगाए जा चुके हैं। डेढ़ लाख पेड़ों...


इंदौर | शहर में पेड़ों का डिजिटल डाटा तैयार किया जा रहा है। 50 हजार पेड़ों पर क्यूआर कोड लगाए जा चुके हैं। डेढ़ लाख पेड़ों की जियो टैगिंग की जा रही है। इसमें पेड़ से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी दर्ज होगी। हर कोड में पेड़ की प्रजाति, ऊंचाई और उम्र जैसी बातें दर्ज हैं। इस डाटाबेस से शहर में कौन से इलाके में किस प्रजाति के कितने पेड़ हैं, पता लगाया जा सकेगा। दो लाख पेड़ों की जियो टैगिंग पर करीब 70 लाख रुपए खर्च होंगे। इसकी मॉनीटरिंग के लिए एनजीओ की मदद भी ली जा रही है। शुरुआती दौर में उन इलाकों को चिह्नित किया गया है, जहां अधिक पेड़ हैं। रेसीडेंसी, रेसकोर्स, राजेंद्र नगर, साकेत जैसे क्षेेत्रों में काम हो रहा है। जियो टैगिंग से पेड़ों की गणना होने से भविष्य में उनके विकास या होने वाले नुकसान का पता लगाना आसान होगा। रोड निर्माण के लिए बाधक पेड़ों की स्थिति पहले से ही उपलब्ध होगी। पेड़ों की सही संख्या होने से अधिक नुकसान होने की दशा में कार्ययोजना में बदलाव भी संभव हो जाएगा। 

अब तक 600 से ज्यादा पेड़ों की कोडिंग की जा चुकी है  तिरुअनंतपुरम 

देश का पहला डिजिटल गार्डन केरल में बन रहा है। राजभवन स्थित 21 एकड़ के क्षेत्र में फैले कनककुन्नु गार्डन में जितने भी पेड़ हैं, सभी को क्यूआर कोड दिया जा रहा है। स्मार्टफोन के जरिए पेड़ों पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन कर उसकी पूरी जानकारी हासिल की जा सकती है। जैसे पेड़ों की प्रजाति, उम्र, बॉटेनिकल नाम, प्रचलित नाम, पेड़ों पर फूल खिलने का मौसम, फल आने का मौसम, चिकित्सा और अन्य इस्तेमाल से जुड़ी जानकारी पलभर में हासिल हो जाएगी। इस गार्डन में पेड़ों की 126 तरह की प्रजातियां हैं, जिन्हें डिजिटल फार्मेट में दर्ज किया गया है। 

इस गार्डन को विकसित करने में केरल विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के डॉ. ए. गंगाप्रसाद व अखिलेश नायर ने मुख्य रूप से योगदान दिया है। कनककुन्नु गार्डन में हजारों पेड़ हैं। फिलहाल 600 पेड़ों पर ही क्विक रिस्पांस यानी क्यूआर कोड लगाए हैं। शेष पर कोडिंग का काम जारी है। गार्डन में आए पोस्ट ग्रेजुएट बॉटनी के छात्र अखिलेश एसवी नायर का कहना है कि 'मैंने अब तक 50 से ज्यादा पेड़ों की जानकारी मोबाइल के जरिए इकट्ठा कर ली है। क्लासरूम या प्रयोगशाला से बेहतर है कि हम प्रकृति के बीच आएं और सालों पुराने पेड़ों के बारे में जानें। आमतौर पर पेड़ को देखकर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि उसकी उम्र कितनी है या फिर उस पर किस मौसम में फल या फूल आते हैं लेकिन इस क्यूआर कोड से हमें मिनटों में ही सारी जानकारी मिल जाती है।' हालांकि अमेरिका और जापान जैसे देशों में पेड़ों पर क्यूआर कोड या माइक्रो चिप अनिवार्य रूप से लगाई जाती है। 

दिल्ली के लुटियंस जोन स्थित लोधी गार्डन के पेड़ों पर क्यूआर कोड सबसे पहले लगाए गए थे। मकसद था लोगों को सालों पुराने पेड़ों के बारे में जानकारी मिले। यहां करीब 100 से ज्यादा पेड़ों पर कोडिंग की गई है। जिन पेड़ों पर क्यूआर कोड लगाए गए हैं, उनमें से कई पेड़ों की उम्र सौ साल से अधिक है।