किसानों की बधाई दें उनके बीच में काम करने के लिए जुट गई आने का

मंजिलें और भी हैं: किसानों के बीच काम करने के लिए दिल्ली छोड़ दी



मैं कभी सोचती भी नहीं थी कि इस आदिवासी इलाके में किसानों के बीच उनकी लीडर बनकर काम करूंगी। मैं इन किसानों को अतिरिक्त आमदनी के तरीके बता रही हूं। मैंने इससे पहले कभी मधुमक्खी पालन नहीं किया। यों तो मैं उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद की रहने वाली हूं। मैंने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ काॅमर्स से ग्रेजुएशन किया है। इसके बाद मैं बंगलूरू में 'गोल्डमेन सेस एसेट मैनेजमेंट' के लिए काम करने लगी।

साथ ही सप्ताह के अंत में बंगलूरू की एक संस्था 'मैजिक बस फाउंडेशन' के लिए वालंटियर के तौर पर काम करती थी। वहां मैं तकरीबन दो हजार बच्चों की मेंटरिंग का काम करती थी। उन बच्चों को खेल के जरिये लाइफ स्किल सिखाती थी। धीरे-धीरे मुझे समाज के लिए काम करने की प्रेरणा मिली। इसके बाद मैं आदिवासी किसानों के साथ काम करने के लिए ओडिशा में एक एनजीओ में शामिल हुई। मैंने किसानों के लिए काम करने का निर्णय लिया।

मुझे लगा कि उनकी समस्या को जानने और समझने के लिए उनके बीच रहना जरूरी है। इसलिए मैं दिल्ली छोड़कर ओडिशा के गजपति जिले में पहुंच गई। जंगलों से घिरे इस इलाके के किसान अतिरिक्त आय के लिए मधुमक्खियों के छत्ते से शहद निकालते थे। मैंने वहां महसूस किया कि स्थानीय लोगों को मधुमक्खियों से डर नहीं लगता और उनको शहद बेचना भी पसंद है।

मैंने देखा कि किसान जब मधुमक्खी के छत्ते से शहद निकालते थे, तो वे उन छत्तों को जला देते थे या फिर छत्ते में लगी मधुमक्खियों को मार देते थे। मधुमक्खी के मरने से उनके द्वारा किया जाने वाला परागण भी खत्म हो जाता था, जिससे किसानों की फसल को बीस-तीस प्रतिशत तक नुकसान होता था। तब मैंने इन किसानों को आधुनिक तरीके से मधुमक्खी पालन सिखाने का विचार किया।