अन्नदाता के आत्म सम्मान को भी समझे सरकारें
प्रदेश में अन्नदाता को हम कितना बेबस, मजबूर मान चुके हैं, कि हमें यह भी नहीं मालूम कि उसमें आत्म सम्मान भी हुआ करता है। सरकार ने जहां अन्नदाता को वोट बैंक से अधिक का दर्जा नहीं दिया तो, प्रशासन ने इसे चौपाया बना दिया। मध्यप्रदेश के विदिशा जिले की गुलाबगंज एवं ग्यारसपुर तहसील में हुये फसल नुकसान सर्वे करने के लिये पीडि़त किसान के गले में स्लेट पट्टी की तख्ती को रस्सी के माध्यम से लटकाकर उनकी तस्वीरों को सर्वे फार्म में लगाया गया है। जो सरकार चुनाव से पूर्व किसान को सर्वोच्च शक्ति बताकर उनका गुणगान कर रही थी, उसे कर्ज माफी का प्रलोभन दे रही थी। आज उसी सरकार के प्रशासनिक नुमाइंदों ने प्रदेश के बेबस किसानों के गले में तख्तियां टांगकर उसे गूंगे-बहरे भिखारी की भांति वाट्सएप एवं इन्टरनेट की दुनिया में याचक की भांति खड़ा कर दिया है।
मध्य प्रदेश में अति वर्षा के कारण खरीफ की फसलें सोयाबीन, मूंग, उडद एवं तुअर पूर्णत: बर्बाद हो चुकी है। सर्वाधिक प्रभावित 38 जिलों में किसानों के खेतों में मात्र फसलों के अवशेष ही दिखाई देते हैं। राज्य सरकार नुकसान का सर्वे कराकर रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेज रही है। ताकि फसल बीमा के साथ राहत पैकेज की भी मांग की जा सके। अनुमानित राहत के रूप में राज्य ने केन्द्र सरकार से 13 हजार करोड़ की मांग की है। प्रभावित जिलों में प्रशासन द्वारा कराये जा रहे फसल नुकसान सर्वे में पीडि़त किसानों के गले में रस्सी से स्लेट तख्ती टांगकर उन्हें याचक के रूप में पेश किया जा रहा है।
प्रदेश के विदिशा जिले में उजागर हुये इस प्रशासनिक कुकृत्य में पीडि़त किसानों के गले में तख्तियां डालकर तहसील प्रशासन द्वारा खींची गई तस्वीरों में किसान का नाम, खसरा क्रमांक, नुकसान का प्रतिशत के साथ नुकसानी खेत को दर्शाया गया है। अक्सर अपराधियों के गले में डाली जाने वाली तख्तियों से मिले आइडिया को जिला प्रशासन ने अपनाया है। महिला किसानों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया गया है। प्रथम दृष्टया यह सम्पूर्ण कृत्य किसानों के आत्म सम्मान को आहत करने वाला है। जो किसान अन्नदाता के रूप में धरती के लिये अन्न पैदा करता है। उसकी फसल नुकसान का आकलन उसके गले में अपराधियों की पहचान दिखाने वाली तख्तियों की प्रतिकृति से की जाती है। निश्चित ही यह निर्लज्जता की पराकाष्ठा है। लेकिन दु:खद, इस शर्मिंदगी भरी प्रक्रिया के सर्मथन में जिले के आईएएस कलेक्टर इसे गड़बड़ी एवं आपात्र हितग्राहियों को रोकने की प्रक्रिया बताते हैं।
प्रदेश का किसान प्राकृतिक आपदा में पहले से ही गमगीन है। वह घाटे की खेती करना भी नहीं चाहता है। इसलिये वह इस प्रशासनिक आदेश से आहत अपमान का घूंट चुपचाप पीने को मजबूर हुआ है। पल-पल की निराशा, अपमान एवं जिल्लत भरी जिंदगी के कारण देशभर में हजारों अन्नदाता प्रति वर्ष अपनी जिंदगी का अंत कर लेते हैं। बावजूद इसके प्रशासन इन्हें दोयम दर्जे से बाहर निकालने की सोच विकसित नहीं कर पा रहा है।
फसल नुकसान का आकलन हलका के आधार पर किये जाने का नियम है। जिसमें सैटेलाइट आकलन का प्रावधन है, न कि गले में व्यक्तिगत तख्तियां पहनाने का। तहसील प्रशासन के माध्यम से अन्नदाताओं के साथ किया गया कृत्य अमानवीय भी है। जिसमें काश्तकार को उसके खेत के समाने खड़ा करके तख्ती डालकर तस्वीरें खीचीं गई। महात्मा गांधी एवं जय जवान जय किसान का नारा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की आत्मा भी शायद इस प्रशासनिक कुकृत्य से शर्मिंदा होगी।
प्रदेश में 60 लाख हेक्टेयर की फसल को चौपटभोपाल। म.प्र. में अतिवर्षा एवं बाढ़ ने 60 लाख हेक्टेयर की खरीफ फसलों को चौपट कर दिया है। इसके लिए सरकार ने केन्द्र से 9000 करोड़ रुपये की सहायता मांगी है। जबकि कुल 16000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान प्रदेश में हुआ है। राजस्व विभाग के मुताबिक प्रदेश के 52 में से 39 जिलों में अतिवृष्टि और बाढ़ से बहुत अधिक क्षति हुई है। राज्य में जून से सितंबर माह के बीच हुई वर्षा से लगभग 60 लाख 47 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की 16 हजार 270 करोड़ रूपये की फसल प्रभावित हुई है। इसमें लगभग 54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 33 प्रतिशत तक फसल क्षतिग्रस्त हुई है। इसी क्रम में 3 हजार 274 पशु शेड भी क्षतिग्रस्त हुए हैं। लगभग 1500 दुधारू पशु, 400 भारवाही पशु और कुक्कुट शालाओं को नुकसान हुआ है। इधर मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ ने गत दिनों नई दिल्ली में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात कर प्रदेश में अति-वृष्टि के कारण किसानों की फसलों को हुए भारी नुकसान का ज्ञापन सौंपा। श्री कमल नाथ ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि वे पुन: केन्द्रीय अध्ययन दल प्रदेश में भेजें, जिससे क्षति का वास्तविक आकलन हो सके। उन्होंने प्रधानमंत्री से प्रदेश में वर्षा के कारण हुई भारी तबाही को गंभीर आपदा की श्रेणी में रखने की माँग के साथ-साथ 9000 करोड़ रुपए की मदद देने का आग्रह किया। यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि केन्द्र की भाजपा सरकार मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को संकट की इस घड़ी में कितनी जल्दी और कितनी राहत देगी, यह समय बतायेगा। |